रविवार, 2 जनवरी 2011

रोशनी लेने चले थे और अंधेरे छा गये...

रोशनी लेने चले थे और अंधेरे छा गये,
मुस्कुराने भी न पाये थे के आँसू आ गये,

ज़िंदगी अब मौत से बढ़कर भयानक हो गई,
जीने वाले ज़िंदगी के नाम से घबरा गये,

आह वो मंज़िल जो मेरी ग़फ़लतों से ग़ुम हुई,
हाय वो रहबर जो मुझको राह से भटका गये,

उनको क्या चाहा के एक आलम मुख़ालिफ़ हो गया,
इक ख़ुशी क्या माँग ली के ग़म के बादल छा गये...

शीमाम जयपुरी

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