शनिवार, 1 जनवरी 2011

तुम्हारी अंजुमन से उठ के दीवाने कहाँ जाते...

तुम्हारी अंजुमन से उठ के दीवाने कहाँ जाते
जो वाबस्ता हुए तुम से वो अफ़्साने कहाँ जाते

तुम्हारी बेरुख़ी ने लाज रख ली बादाख़ाने की
तुम आँखों से पिला देते तो मैख़ाने कहाँ जाते?

चलो अच्छा हुआ, काम आ गई दीवानगी अपनी
वगरना हम ज़माने भर को समझाने कहाँ जाते?


Chitra Singh only sang the foregoing three couplets..
The additional two below are included for completeness...


निकल कर दैर-ओ-काबा से, अगर मिलता न मैख़ाना
तो ठुकराए हुए इनसाँ, ख़ुदा जाने कहाँ जाते!

'क़तील', अपना मुक़द्दर ग़म से बेगाना अगर होता
तो फिर अपने-पराए हम से पहचाने कहाँ जाते...


क़तील सिफाई

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