बुधवार, 30 सितंबर 2009

माँ

माँ कबीर की साखी जैसी
तुलसी की चौपाई-सी
माँ मीरा की पदावली-सी
माँ है ललित रूबाई-सी।
माँ वेदों की मूल चेतना
माँ गीता की वाणी-सी
माँ त्रिपिटिक के सिद्ध सुक्त-सी
लोकोक्तर कल्याणी-सी।
माँ द्वारे की तुलसी जैसी
माँ बरगद की छाया-सी
माँ कविता की सहज वेदना
महाकाव्य की काया-सी।
माँ अषाढ़ की पहली वर्षा
सावन की पुरवाई-सी
माँ बसन्त की सुरभि सरीखी
बगिया की अमराई-सी।
माँ यमुना की स्याम लहर-सी
रेवा की गहराई-सी
माँ गंगा की निर्मल धारा
गोमुख की ऊँचाई-सी।
माँ ममता का मानसरोवर
हिमगिरि सा विश्वास है
माँ श्रृद्धा की आदि शक्ति-सी
कावा है कैलाश है।
माँ धरती की हरी दूब-सी
माँ केशर की क्यारी है
पूरी सृष्टि निछावर जिस पर
माँ की छवि ही न्यारी है।
माँ धरती के धैर्य सरीखी
माँ ममता की खान है
माँ की उपमा केवल है
माँ सचमुच भगवान है।

जगदीश व्योम

3 टिप्‍पणियां:

Chandan Kumar Jha ने कहा…

बहुत सुन्दर जी । एक सुझाव है कि एक दिन में एक ही कविता पोस्ट करें तो ज्यादा पाठक मिलेंगे । । और हा यह वर्ड वेरिफिकेशन हटा दे, टिप्पणी करने में आसानी होती है । आभार

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

माँ धरती के धैर्य सरीखी
माँ ममता की खान है
माँ की उपमा केवल है
माँ सचमुच भगवान है।

सचमुच माँ तो ईश्वर की दी हुई वो नेमत है,जिसकी महिमा का बखान करना भी असंभव है!!!
श्रेष्ट रचनाकारों की कृ्तियों को यहाँ प्रस्तुत करने का ये प्रयास बढिया लगा......
शुभकामनाऎ!!!!!!

आलसी यायावर ने कहा…

Very Nice Poem...........

Thank You For Post This Valuable Poem...

Shyam