रविवार, 27 सितंबर 2009

बोलता है..

मेरी दीवार, मेरा दर बोलता है,
वो आ जाए तो घर बोलता है,

इलाही खैर हो कातिल की मेरी,
सुना है ये खंजर बोलता है,

ये एजाज है उसकी गुफ्त-गु का,
मुखातिब हो तो पत्थर बोलता है,

शराफत का पता चलता है उसकी,
वो जब गुस्से में भर कर बोलता है,

छुपाऊं इस गरीबी को कहाँ तक,
जरा सी बारिश हो तो छप्पर बोलता है....

-नवाज देवबंदी साहब

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