शनिवार, 11 फ़रवरी 2012

अपनी ख़ुद्दारी जो दर-दर बेचता रह जाएगा - प्रेम भारद्वाज

अपनी खुद्दारी जो दर दर बेचता रह जाएगा
उम्र भर यूँ ही वह माथा टेकता रह जाएगा

जेब वाले माल मेले से उड-आ ले जायेंगे
कमज़ोर ख़ाली जेब आँखें सेकता रह जाएगा

भक्तजन तो सीस लेकर राह पकड़ेंगे कोई
लेके अपना सा मुँह खाली देवता रह जाएगा

ज्ञान पूरा भी नहीं है साथ पूरा भी नहीं
व्यूह अभिमन्यु अकेला भेदता रह जाएगा

कब तलक लुटती रहेगी बेटियों की असमतें
कब तलक इक बाप यह सब देखता रह जाएगा

क्या मिलेगा प्रेम पाती तब नए डेरे अगर
उसमें वो पिछली ही बस्ती का पता रह जाएगा...

प्रेम भारद्वाज


अजनबी ख्वाहिशें सीने में दबा भी न सकूँ

अजनबी ख्वाहिशें सीने में दबा भी न सकूँ
ऐसे जिद्दी हैं परिंदे के उड़ा भी न सकूँ

फूँक डालूँगा किसी रोज ये दिल की दुनिया
ये तेरा खत तो नहीं है कि जला भी न सकूँ

मेरी गैरत भी कोई शय है कि महफ़िल में मुझे
उसने इस तरह बुलाया है कि जा भी न सकूँ

इक न इक रोज कहीं ढ़ूँढ़ ही लूँगा तुझको
ठोकरें ज़हर नहीं हैं कि मैं खा भी न सकूँ

फल तो सब मेरे दरख्तों के पके हैं लेकिन
इतनी कमजोर हैं शाखें कि हिला भी न सकूँ

राहत इन्दौरी

शनिवार, 5 मार्च 2011

अगर मैं धूप के सौदागरों से डर जाता...

अगर मैं धूप के सौदागरों से डर जाता
तो अपनी बर्फ़ उठाकर बता किधर जाता

पकड़ के छोड़ दिया मैंने एक जुगनू को
मैं उससे खेलता रहता तो वो बिखर जाता

मुझे यक़ीन था कि चोर लौट आएगा
फटी क़मीज़ मेरी ले वो किधर जाता

अगर मैं उसको बता कि मैं हूँ शीशे का
मेरा रक़ीब मुझे चूर-चूर कर जाता

तमाम रात भिखारी भटकता फिरता रहा
जो होता उसका कोई घर तो वो भी घर जाता

तमाम उम्र बनाई हैं तूने बन्दूकें
अगर खिलौने बनाता तो कुछ सँवर जाता...


ज्ञान प्रकाश विवेक

बुधवार, 26 जनवरी 2011

राष्ट्रगीत में भला कौन वह, भारत-भाग्य विधाता है
फटा सुथन्ना पहले जिसका, गुन हरचरना गाता है।

मख़मल टमटम बल्लम तुरही, पगड़ी छत्र चंवर के साथ,
तोप छुड़ाकर ढोल बजाकर, जय-जय कौन कराता है।

पूरब-पच्छिम से आते हैं, नंगे-बूचे नरकंकाल,
सिंहासन पर बैठा, उनके, तमगे कौन लगाता है।

कौन-कौन है वह जन-गण-मन-अधिनायक वह महाबली,
डरा हुआ मन बेमन जिसका, बाजा रोज बजाता है।

रघुवीर सहाय

शुक्रवार, 7 जनवरी 2011

हिज्र कि सब का सहारा भी नहीं...

हिज्र की सब का सहारा भी नहीं
अब फलक पर कोई तारा भी नहीं

बस तेरी याद ही काफी है मुझे
और कुछ दिल को गवारा भी नहीं

जिसको देखूँ तो मैं देखा ही करूँ
ऐसा अब कोई नजारा भी नहीं

डूबने वाला अजब था कि मुझे
डूबते वक्त पुकारा भी नहीं

कश्ती ए इश्क वहाँ है मेरी
दूर तक कोई किनारा भी नहीं

दो घड़ी उसने मेरे पास आकर
बारे गम सर से उतारा भी नहीं

कुछ तो है बात कि उसने साबिर
आज जुल्फों को सँवारा भी नहीं।

साबिर इंदौरी

दिल कि दुनिया बसा गया है कौन...

दिल की दुनिया बसा गया है कौन,
रंज-ओ-ग़म था मिटा गया है कौन,

आके चुपके से ख़्वाब में मेरे,
नींदें मीठी बना गया है कौन,

दूर रह कर भी शाख़ से कलियो,
तुमको जीना बता गया है कौन,

क्यों ये सरशारियाँ हवाओं में,
मस्ती अपनी लुटा गया है कौन...

अहसान 'मेरठी'

बुधवार, 5 जनवरी 2011

वो मुक़द्दर न रहा और वो ज़माना न रहा...

वो मुक़द्दर न रहा और वो ज़माना न रहा,
तुम जो बेगाने हुए, कोई यगाना न रहा,
ओ ज़मीं तू ही लब-ए-ग़ौर से इतना कह दे,
आ मेरी गोद में गर, कोई ठिकाना न रहा...

जिसकी उम्मीद में जीते थे, ख़फ़ा है वो भी,
ऐ अज़ल! आ कि कोई अब तो बहाना न रहा,
रहम कर, रहम कर, कि ये इश्क़ सितम है मुझ पर,
तीर फिर किस पै चलेंगे जो निशाना न रहा...

आगा हश्र कश्मीरी