शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2009

दाता एक राम

साधू, संत, फकीर, औलिया, दानवीर, भिखमंगे
दो रोटी के लिए रात-दिन नाचें होकर नंगे

घाट-घाट घूमे, निहारी सारी दुनिया
दाता एक राम, भिखारी सारी दुनिया !

राजा, रंक, सेठ, संन्यासी, बूढ़े और नवासे
सब कुर्सी के लिए फेंकते उल्टे-सीधे पासे

द्रौपदी अकेली, जुआरी सारी दुनिया
दाता एक राम, भिखारी सारी दुनिया !

कहीं न बुझती प्यास प्यार की, प्राण कंठ में अटके
घर की गोरी क्लब में नाचे, पिया सड़क पर भटके

शादीशुदा होके, कुँआरी सारी दुनिया
दाता एक राम, भिखारी सारी दुनिया !

पंचतत्व की बीन सुरीली, मनवा एक सँपेरा
जब टेरा, पापी मनवा ने, राग स्वार्थ का टेरा

संबंधी हैं साँप, पिटारी सारी दुनिया
दाता एक राम, भिखारी सारी दुनिया !

अल्हड बीकानेरी

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