रविवार, 27 सितंबर 2009

दिन आ रहे हैं

नसीब आजमाने के दिन आ रहे हैं,
करीब उनके आने के दिन आ रहे हैं,

जो दिल से कहा है जो दिल से सुना है,
सब उनको सुनाने के दिन आ रहे हैं,

अभी दिलो-जाँ सारे-राह रख दो,
के लुटने-लुटाने के दिन आ रहे हैं,

टपकने लगी है निगाहों से मस्ती,
निगाहें चुराने के दिन आ रहे हैं,

सब्बा फ़िर हमसे पूछती फ़िर रही है,
चमन को सजाने के दिन आ रहे हैं,

चलो "फैज़" फ़िर से कहीं दिल लगायें,
सुना है ठिकाने के दिन आ रहे हैं......

(फैज़ अहमद फैज़)

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