शब्दों की अविरल धारा...
वो आए घर हमारे खुदा कि कुदरत है॥ कभी हम उनको, कभी अपने घर को देखते हैं...
मंगलवार, 4 जनवरी 2011
शाम को सुबह-ए-चमन याद आई...
शाम को सुबह-ए-चमन याद आई,
किस की ख़ुश्बू-ए-बदन याद आई,
जब ख़यालों में कोई मोड़ आया,
तेरे गेसू की शिकन याद आई,
चाँद जब दूर उफ़क़ पर डूबा,
तेरे लहजे की थकन याद आई,
दिन शुआओं से उलझते गुज़रा,
रात आई तो किरन याद आई...
अहमद
नदीम
कासमी
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