शनिवार, 1 जनवरी 2011

जब रात की तन्हाई दिल बन के धड़कती है...

जब रात की तन्हाई दिल बन के धड़कती है,
यादों के दरीचे में चिलमन सी सरकती है,

यूँ प्यार नहीं छुपता पलकों के झुकाने से,
आँखों के लिफ़ाफ़ों में तहरीर चमकती है,

ख़ुश-रंग परिंदों के लौट आने के दिन आये,
बिछड़े हुये मिलते हैं जब बर्क पिघलती है,

शोहरत की बुलन्दी भी पल भर का तमाशा है,
जिस डाल पे बैठे हो वो टूट भी सकती है...

बशीर बद्र

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