शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010

क़िस्सा-ए-महर-ओ-वफ़ा कब का पुराना हो गया...

क़िस्सा-ए-महर-ओ-वफ़ा कब का पुराना हो गया,
उनसे बिछड़े भी हमें अब तो ज़माना हो गया,

रात के पिछले पहर देखा था जिनको ख़ाब में,
ज़िंदगी भर अब उन्हें मुश्किल भुलाना हो गया,

प्यार के दो बोल ही तो थे मेरी रुस्वाई के,
इक ज़रा सी बात का इतना फ़साना हो गया,

उनकी ज़ुल्फ़ों की घनेरी छाँव क्या आई के फिर,
देखते ही देखते मौसम सुहाना हो गया,

जिस गली में हिचकिचाते थे कभी जाते हुये,
उस गली में अब 'हसन' का आना जाना हो गया...

हसन रिज़वी

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