आँखें, पलकें, गाल भिगोना ठीक नहीं,
छोटी-मोटी बात पे रोना ठीक नहीं,
गुमसुम तन्हा क्यों बैठे हो सब पूछें,
इतना भी संज़ीदा होना ठीक नहीं,
कुछ और सोच जरीया उस को पाने का,
जंतर-मंतर जादू-टोना ठीक नहीं,
अब तो उस को भूल ही जाना बेहतर है,
सारी उम्र का रोना-धोना ठीक नहीं,
मुस्तक़बिल के ख़्वाबों की भी फिक्र करो,
यादों के ही हार पिरोना ठीक नहीं,
दिल का मोल तो बस दिल ही हो सकता है,
हीरे-मोती चांदी-सोना ठीक नहीं,
कब तक दिल पर बोझ उठाओगे परवाज,
माज़ी के ज़ख़्मों को ढोना ठीक नहीं...
जतिन्दर परवाज़
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